Shri Krishna Govind Hare Murare, Hey Nath Narayana Vasudeva
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेवाय
श्री - निधि
कृष्ण - आकर्षण तत्व
गोविन्द - इन्द्रियों को वशीभुत करना गो-इन्द्रि, विन्द बन्द करना, वशीभूत
हरे - दुःखों का हरण करने वाले
मुरारे - समस्त बुराईयाँ- मुर (दैत्य)
हे नाथ - मैं सेवक आप स्वामी
नारायण - मैं जीव आप ईश्वर
वासु - प्राण
देवाय - रक्षक
"हे आकर्षक तत्व मेरे प्रभो, इन्द्रियों को वशीभूत करो, दुःखों का हरण करो, समस्त बुराईयों का बध करो, मैं सेवक हूँ आप स्वामी, मैं जीव हूं आप ब्रह्म, प्रभो ! मेरे प्राणों के आप रक्षक हैं ।"
Jai Sri Krishna