Shri Ganesh Sankat Chouth Vrat
On this day, one should observe a complete fast the whole day. In the evening after a bath, one should make preparations for the ritualistic worship of Lord Ganesh. In the night after looking at the moon, either an idol of Ganesh or a betelnut placed on a mound of consecrated rice (akshata) symbolic of Ganesh, should be worshipped with sixteen substances (shodashopchar puja). Twenty-one rounds (avartans) of the Atharvashirsha should be recited. One should pay obeisance to the moon after giving an offering and sprinkling sandalwood paste (gandha), flowers and consecrated rice in its direction.
सकट चौथ
श्रीगणेश सकट चतुर्थी का व्रत माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है | इस दिन विधा - बुद्धि - वारिधि के सवामी गणेश तथा चंद्रमा की पूजा की जाती है |
साल के हर महीने में गणेश चतुर्थी पडती है, लेकिन स्कंद पुराण में माघ मास की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को सर्वाधिक प्रभावकारी बताया गया है।
माता पार्वती ने भी भगवान शंकर के कहने पर माघ कृष्ण चतुर्थी को संकष्ट हरण श्री गणेश जी का व्रत रखा था | फलस्वरूप उन्हें गणेश जी पुत्रस्वरूप में प्राप्त हुए | भगवान शंकर के मस्तक पर सुशोभित होने वाला चंद्रमा आज के दिन श्री गणेश भगवान के मस्तक पर विराजमान होता है| इसलिए आज चंद्रा दर्शन का अर्थ है श्री गणेश भगवान के दर्शन होना |
माघ मास में 'भालचन्द्र' नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए | इनका पूजन षोडशोउपचार विधि से करना चाहिए | तिल के दस लड्डू बनाकर, पांच लड्डू देवता को चढ़ावे और शेष पांच ब्रह्मण को दान दे देवें | मोदक तथा गुड मे बने तिल (सफेद) के लड्डू और मगदल का नैवेद्या अर्पित करें- चावल के लड्डू भी चढ़ाएं | चंद्र दर्शन करें और चंद्रमा को भी अर्घ्या प्रदान करें| क्योंकि इस दिन भगवान गणेश चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण करतें हैं| माघ कृष्ण - गणेश चतुर्थी व्रत कथा ( ऋषि शर्मा ब्राह्मण की कथा ) पढ़े या सुने |
Moonrise Time (चन्द्रोदय) on Sankat Chouth - 19 Jan 2014
New Delhi : 20:45
Kolkota : 20:04
Chennai: 20:41
Mumbai: 21:07
Bangalore: 20:52
Sakat Chauth Vrat Katha
सकट चौथ कथा
किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवां पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित ने कहा, ''हर बार आंवां लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवां पक जाएगा।'' राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढि़या के लड़के की बारी आई। बुढि़या के एक ही बेटा था तथा उसके जीवन का सहारा था, पर राजाज्ञा कुछ नहीं देखती। दुखी बुढि़या सोचने लगी, ''मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा।'' तभी उसको एक उपाय सूझा। उसने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, ''भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।''
सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और बुढि़या सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवां पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवां पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था और बुढि़या का बेटा जीवित व सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।
साल के हर महीने में गणेश चतुर्थी पडती है, लेकिन स्कंद पुराण में माघ मास की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को सर्वाधिक प्रभावकारी बताया गया है।
माता पार्वती ने भी भगवान शंकर के कहने पर माघ कृष्ण चतुर्थी को संकष्ट हरण श्री गणेश जी का व्रत रखा था | फलस्वरूप उन्हें गणेश जी पुत्रस्वरूप में प्राप्त हुए | भगवान शंकर के मस्तक पर सुशोभित होने वाला चंद्रमा आज के दिन श्री गणेश भगवान के मस्तक पर विराजमान होता है| इसलिए आज चंद्रा दर्शन का अर्थ है श्री गणेश भगवान के दर्शन होना |
माघ कृ्ष्ण पक्ष (सकट चौथ) - Sun, 19 Jan 2014
माघ शुक्ल पक्ष (तिल चौथ) - Sun, 2 Feb 2014
माघ शुक्ल पक्ष (तिल चौथ) - Sun, 2 Feb 2014
गणेश जी को मोदक विशेष प्रिय है। अत: माघ मास में उन्हें गुड से बने तिल के लड्डूओं का भोग लगाएं। उसके बाद प्रसाद के रूप में फलाहार ग्रहण करें। जो लोग उपवास रखने में असमर्थ हों वे नमक-रहित सात्विक आहर ग्रहण कर सकते हैं।
माघ मास में 'भालचन्द्र' नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए | इनका पूजन षोडशोउपचार विधि से करना चाहिए | तिल के दस लड्डू बनाकर, पांच लड्डू देवता को चढ़ावे और शेष पांच ब्रह्मण को दान दे देवें | मोदक तथा गुड मे बने तिल (सफेद) के लड्डू और मगदल का नैवेद्या अर्पित करें- चावल के लड्डू भी चढ़ाएं | चंद्र दर्शन करें और चंद्रमा को भी अर्घ्या प्रदान करें| क्योंकि इस दिन भगवान गणेश चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण करतें हैं| माघ कृष्ण - गणेश चतुर्थी व्रत कथा ( ऋषि शर्मा ब्राह्मण की कथा ) पढ़े या सुने |
Ganesh Sankashti Chaturthi Mantra Stuti
गणेशाय नमस्तुभ्यं सर्वसिद्दिप्रदायकम.
संकष्ठ हरणं मे देव गृहानार्घः नमोस्तुते -
कृष्ण पक्षे चतुर्थ याँ तू सम्पुजितिम विधुदये.
क्षिप्रं प्रसीद देवेश गृहानार्घः नमोस्तुते -
संकष्ठ हरणं मे देव गृहानार्घः नमोस्तुते -
कृष्ण पक्षे चतुर्थ याँ तू सम्पुजितिम विधुदये.
क्षिप्रं प्रसीद देवेश गृहानार्घः नमोस्तुते -
Chaturthi Tithi Mantra
तिथिनामुत्तमे देवी गणेश प्रियेवाल्लभे-
सर्वसंकट नाशाय गृहण अर्घ्य नमोस्तुते .
“चतुर्थ येई नमः ” इदम् अर्घ समर्पयामि
सर्वसंकट नाशाय गृहण अर्घ्य नमोस्तुते .
“चतुर्थ येई नमः ” इदम् अर्घ समर्पयामि
Moonrise Time (चन्द्रोदय) on Sankat Chouth - 19 Jan 2014
New Delhi : 20:45
Kolkota : 20:04
Chennai: 20:41
Mumbai: 21:07
Bangalore: 20:52
Sakat Chauth Vrat Katha
सकट चौथ कथा
किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवां पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित ने कहा, ''हर बार आंवां लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवां पक जाएगा।'' राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढि़या के लड़के की बारी आई। बुढि़या के एक ही बेटा था तथा उसके जीवन का सहारा था, पर राजाज्ञा कुछ नहीं देखती। दुखी बुढि़या सोचने लगी, ''मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा।'' तभी उसको एक उपाय सूझा। उसने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, ''भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।''
सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और बुढि़या सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवां पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवां पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था और बुढि़या का बेटा जीवित व सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।