जन्मकुंडली में यदि चंद्रमा से द्वादश तथा द्वितीय भाव में सूर्य, राहु-केतु के अतिरिक्त कोई अन्य ग्रह स्थित न हो तो 'क्रेमद्रुम' नामक अशुभ योग निर्मित होता है। इसे ज्योतिष ग्रंथों में सर्वाधिक अशुभ माने जाने वाले योगों में शामिल किया गया है। केमद्रुम योग के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह योग जिस जातक की कुंडली में निर्मित होता है उसे आजीवन संघर्ष और अभाव में ही जीवन यापन करना पड़ता है।
अर्थात चन्द्र के दोनों और मंगल , बुध , गुरु , शुक्र ,या शनि मैं से कोई न कोई ग्रह होना आवश्यक हैं (इस योग मैं राहू केतु की मान्यता नहीं हैं क्योंकि ये मात्र छाया ग्रह हैं ) एस नहीं होने पर दुर्भाग्य के प्रतीक केमद्रुम योग बनता हैं
इस योग के विषय मैं जातक पारिजात नामक ग्रन्थ मैं कहा गया हैं कि -
योगे केमद्रुमे प्रापो यस्मिन कश्चि जातके ।
राजयोगा विशशन्ति हरि दृष्टवां यथा द्विषा: ।।
राजयोगा विशशन्ति हरि दृष्टवां यथा द्विषा: ।।
अर्थात--- जन्म के समय यदि किसी कुंडली मैं केमद्रुम योग हो और उसकी कुंडली मैं सेकड़ो राजयोग भी हो तो वह भी विफल हो जातें हैं । अर्थात केमद्रुम योग अन्य सैकड़ों राजयोगो का प्रभाव उसी प्रकार समाप्त कर देता हैं , जिस प्रकार जंगल मैं सिंह हाथियों का प्रभाव समाप्त कर देता हैं ।
इस योग के जन्मकुंडली मैं विद्यमान होने पर जातक स्त्री, संतान , धन , घर , वाहन , कार्य व्यवसाय, माता, पिता, अन्य रिश्तेदार अर्थात सभी प्रकार के सुखों से ही होकर ईधर, उधर व्यर्थ भटकने के लिए मजबूर होता हैं !
यह एक अत्यंत अशुभ योग है। इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य चाहे इन्द्र का प्रिय पुत्र ही क्यों ना हो वह अंत में दरिद्री होकर भिक्षा मांगता है।
"कान्तान्नपान्ग्रहवस्त्रसुह्यदविहीनो,
दारिद्रयदुघःखगददौन्यमलैरूपेतः।
प्रेष्यः खलः सकललोकविरूद्धव्रत्ति,
केमद्रुमे भवति पार्थिववंशजोऽपि॥"
दारिद्रयदुघःखगददौन्यमलैरूपेतः।
प्रेष्यः खलः सकललोकविरूद्धव्रत्ति,
केमद्रुमे भवति पार्थिववंशजोऽपि॥"
अर्थात- यदि केमद्रुम योग हो तो मनुष्य स्त्री,अन्न,घर,वस्त्र व बन्धुओं से विहीन होकर दुःखी,रोगी,दरिद्री होता है चाहे उसका जन्म किसी राजा के यहां ही क्यों ना हुआ हो।
Kemadruma Yoga Cancellation - Mantra Healing
बाला त्रिपुरा मन्त्र
ऐं क्लीं सौः ।
यह मन्त्र तीन लाख जपने से सिद्ध होता है । इससे जीवन में पूर्ण समृद्धि, सफलता और अक्षय कीर्ति प्राप्त होती है। मूल रुप से यह तांत्रिक मन्त्र कहा गया है।
दुर्गाष्टाक्षर मन्त्र
ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः ।
एक लाख मन्त्र जपने से यह मन्त्र सिद्ध होता है तथा इस मन्त्र में अद्भुत शक्ति है। रोग-मुक्ति, वाक् सिद्धि, शत्रुओं पर विजय और जीवन में पूर्ण सुख प्राप्त करने के लिए यह मन्त्र अचूक एवं सिद्धिदायक है।
जो साधनासे परिचित नहीं हैं वे इस मन्त्र का प्रयोग कर सकते है।
भैरवी गायत्री मन्त्र
ॐ त्रिपुरायै च विद्महे भैरव्यै च धीमहि,
तन्नो देवी प्रचोदयात् ।
ऊपर वर्णित यह सभी मन्त्र जन्म कुंडली में स्थित केमद्रुम (Kemadruma) दोष जैसे कुप्रभाव वाले अनेक दोषों का नाश करने में सक्षम है।
Navarn Mantra नवार्ण मन्त्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।
इस मन्त्र के बिना देवी से संबंधित का कोई भी अनुष्ठान सफल एवं सिद्ध नहीं हो पाता ।
देवी के मन्त्र जाप के समय शुद्ध एवं पवित्र रहें ।
देवी के मन्त्र जाप में रुद्राक्षकी माला एवं रात्रि का समय उचित है।
Durgaashtakshar or Tripur Bhairvi Gayatri Mantra is recommended for "गृहस्थ" people.