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Charming Ganesh
This year Ganesh Chaturthi (Vinayak Chaturthi) falls on the Fri, 25 August 2017

It is extremely harmful to look at the Moon on Ganesh-Chaturthi. Therefore be very careful not to look at the moon on that night. If one happens to look at the Moon on the night of Ganesh-Chaturthi, then no matter how innocent one is, one will definitely be defamed.

Even Lord Krishna was accused of having stolen the ‘Syamantak Mani’ because of looking at the Moon on this night. However, if you look at the Moon on the 3rd and 5th nights of that lunar month, the harmful effects caused by seeing the Moon on the 4th lunar night is countered. In any case, if by mistake you do happen to look at the Moon on this night, read or listen to the episode narrating the theft of the Syamantak Mani as described in the 56th and 57th chapters of the tenth Skanda of the Srimad Bhagawata.



ill Effects of Chandra Darshan & it's Remedies

Avoid Moon Sighting

From 20:27 Hrs of 24th August 2017 to 21:45 Hrs of 25th August 2017 (Both Days & Nights)

यदि कोई मनुष्य अनिच्छा से भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष चतुर्थी की रात्रि को चन्द्रमा को देखता हैं तो उसे झूठा-कलंक लगता है। इस गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हु‌ए, इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जा‌ए तो निम्न मंत्र से पवित्र किया हुआ जल् पीना चाहिये ।


‘सिहः प्रसेनम्‌ अवधीत्‌, सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥

‘सुन्दर सलोने कुमार ! इस मणि के लिये सिंह ने प्रसेन को मारा है और जाम्बवान ने उस सिंह का संहार किया है, अतः तुम रो‌ओ मत । अब इस सय्मन्तक मणि पर तुम्हारा ही अधिकार है।’
-ब्रह्मावैवर्त् पुराण् (अध्याय् ७८)

Katha (Story)

एक बार नंदकिशोर ने सनतकुमारों से कहा कि चौथ की चंद्रमा के दर्शन करने से श्रीकृष्ण पर जो लांछन लगा था, वह सिद्धि विनायक व्रत करने से ही दूर हु‌आ था। ऐसा सुनकर सनतकुमारों को आश्चर्य हु‌आ। उन्होंने पूर्णब्रह्म श्रीकृष्ण को कलंक लगने की कथा पूछी तो नंदकिशोर ने बताया-एक बार जरासन्ध के भय से श्रीकृष्ण समुद्र के मध्य नगरी बसाकर रहने लगे। इसी नगरी का नाम आजकल द्वारिकापुरी है। द्वारिकापुरी में निवास करने वाले सत्राजित यादव ने सूर्यनारायण की आराधना की। तब भगवान सूर्य ने उसे नित्य आठ भार सोना देने वाली स्यमन्तक नामक मणि अपने गले से उतारकर दे दी।

मणि पाकर सत्राजित यादव जब समाज में गया तो श्रीकृष्ण ने उस मणि को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। सत्राजित ने वह मणि श्रीकृष्ण को न देकर अपने भा‌ई प्रसेनजित को दे दी। एक दिन प्रसेनजित घोड़े पर चढ़कर शिकार के लि‌ए गया। वहाँ एक शेर ने उसे मार डाला और मणि ले ली। रीछों का राजा जामवन्त उस सिंह को मारकर मणि लेकर गुफा में चला गया।

जब प्रसेनजित क‌ई दिनों तक शिकार से न लौटा तो सत्राजित को बड़ा दुःख हु‌आ। उसने सोचा, श्रीकृष्ण ने ही मणि प्राप्त करने के लि‌ए उसका वध कर दिया होगा। अतः बिना किसी प्रकार की जानकारी जुटा‌ए उसने प्रचार कर दिया कि श्रीकृष्ण ने प्रसेनजित को मारकर स्यमन्तक मणि छीन ली है। इस लोक-निन्दा के निवारण के लि‌ए श्रीकृष्ण बहुत से लोगों के साथ प्रसेनजित को ढूंढने वन में ग‌ए। वहाँ पर प्रसेनजित को शेर द्वारा मार डालना और शेर को रीछ द्वारा मारने के चिह्न उन्हें मिल ग‌ए। रीछ के पैरों की खोज करते-करते वे जामवन्त की गुफा पर पहुँचे और गुफा के भीतर चले ग‌ए। वहाँ उन्होंने देखा कि जामवन्त की पुत्री उस मणि से खेल रही है। श्रीकृष्ण को देखते ही जामवन्त युद्ध के लि‌ए तैयार हो गया। युद्ध छिड़ गया।

गुफा के बाहर श्रीकृष्ण के साथियों ने उनकी सात दिन तक प्रतीक्षा की। फिर वे लोग उन्हें मर गया जानकर पश्चाताप करते हु‌ए द्वारिकापुरी लौट ग‌ए। इधर इक्कीस दिन तक लगातार युद्ध करने पर भी जामवन्त श्रीकृष्ण को पराजित न कर सका। तब उसने सोचा, कहीं यह वह अवतार तो नहीं जिसके लि‌ए मुझे रामचंद्रजी का वरदान मिला था। यह पुष्टि होने पर उसने अपनी कन्या का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया और मणि दहेज में दे दी।

श्रीकृष्ण जब मणि लेकर वापस आ‌ए तो सत्राजित अपने कि‌ए पर बहुत लज्जित हु‌आ। इस लज्जा से मुक्त होने के लि‌ए उसने भी अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।

कुछ समय के बाद श्रीकृष्ण किसी काम से इंद्रप्रस्थ चले ग‌ए। तब अक्रूर तथा ऋतु वर्मा की राय से शतधन्वा यादव ने सत्राजित को मारकर मणि अपने कब्जे में ले ली। सत्राजित की मौत का समाचार जब श्रीकृष्ण को मिला तोवे तत्काल द्वारिका पहुँचे। वे शतधन्वा को मारकर मणि छीनने को तैयार हो ग‌ए। इस कार्य में सहायता के लि‌ए बलराम भी तैयार थे। यह जानकर शतधन्वा ने मणि अक्रूर को दे दी और स्वयं भाग निकला। श्रीकृष्ण ने उसका पीछा करके उसे मार तो डाला, पर मणि उन्हें नहीं मिल पा‌ई।

बलरामजी भी वहाँ पहुँचे। श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि मणि इसके पास नहीं है। बलरामजी को विश्वास न हु‌आ। वे अप्रसन्न होकर विदर्भ चले ग‌ए। श्रीकृष्ण के द्वारिका लौटने पर लोगों ने उनका भारी अपमान किया। तत्काल यह समाचार फैल गया कि स्यमन्तक मणि के लोभ में श्रीकृष्ण ने अपने भा‌ई को भी त्याग दिया। श्रीकृष्ण इस अकारण प्राप्त अपमान के शोक में डूबे थे कि सहसा वहाँ नारदजी आ ग‌ए। उन्होंने श्रीकृष्णजी को बताया- आपने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के चंद्रमा का दर्शन किया था। इसी कारण आपको इस तरह लांछित होना पड़ा है।

श्रीकृष्ण ने पूछा- चौथ के चंद्रमा को ऐसा क्या हो गया है जिसके कारण उसके दर्शनमात्र से मनुष्य कलंकित होता है। तब नारदजी बोले- एक बार ब्रह्माजी ने चतुर्थी के दिन गणेशजी का व्रत किया था। गणेशजी नेप्रकट होकर वर माँगने को कहा तो उन्होंने माँगा कि मुझे सृष्टि की रचना करने का मोह न हो। गणेशजी ज्यों ही ’तथास्तु’ कहकर चलने लगे, उनके विचित्र व्यक्तित्व को देखकर चंद्रमाने उपहास किया। इस पर गणेशजी ने रुष्ट होकर चंद्रमा को शाप दिया कि आज से को‌ई तुम्हारा मुख नहीं देखना चाहेगा। शाप देकर गणेशजी अपने लोक चले ग‌ए और चंद्रमा मानसरोवर की कुमुदिनियों में जा छिपा। चंद्रमा के बिना प्राणियों को बड़ा कष्ट हु‌आ। उनके कष्ट को देखकर ब्रह्माजी की आज्ञा से सारे देवता‌ओं के व्रत से प्रसन्न होकर गणेशजी ने वरदान दिया कि अब चंद्रमा शाप से मुक्त तो हो जा‌एगा, पर भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जो भी चंद्रमा के दर्शन करेगा, उसे चोरी आदि का झूठा लांछन जरूर लगेगा। किन्तु जो मनुष्य प्रत्येक द्वितीया को दर्शन करता रहेगा, वह इस लांछन से बच जा‌एगा। इस चतुर्थी को सिद्धि विनायक व्रत करने से सारे दोष छूट जा‌एँगे।

यह सुनकर देवता अपने-अपने स्थान को चले ग‌ए। इस प्रकार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करने से आपको यह कलंक लगा है। तब श्रीकृष्ण ने कलंक से मुक्त होने के लि‌ए यही व्रत किया था।